शनिवार, 10 जुलाई 2021

चुप क्यों हो कुछ तो बोलो

 चुप क्यों हो कुछ तो बोलो 
अपनी नहीं अपनों की कह दो 
कुछ अपनी कह दो, कुछ मेरी सुनलो
हो जाए तन - मन चंचल 
खिल उठे मन का आंचल
भर जाए फिर कुछ नई उमंग 
खुशियों  से भर जाए जीवन
जग उठे सुन्दर  सा सपना ।

खो जाए तेरे बातो में जीवन की सारी उलझन 
नई दिशा मिल जाए कुछ ऐसे 
जैसे मिले मंजिल  हारे मन को 
चुप क्यों हो कुछ भी कह दो
बस इतना कह दो की
मैं अच्छा हूं तुम कैसी हो।

मैं अच्छा हूं तुम कैसी हो
इतना कहने की देरी थी 
सच पूछ रहे या था सपना, सच पूछ रहे या था सपना
नहीं नहीं मैं सच पूछ रहा 
नहीं कोई तेरा सपना
मैं तो आज भी तेरा वैसे हूं 
जैसे कल कुछ था अपना
कहो कैसे हो तुम।

सिर्फ तेरे पूछने भर से खिल उठा
जीवन कुछ ऐसे जैसे  
जैसे मिल गई हो खोया पल 
सब दर्द दूर हुई कुछ ऐसे 
जैसे कुछ भी तो नहीं हुआ हो कल
महक उठा मन कुछ ऐसे जैसे
पतझड़ में खिल उठा  सावन 
आ गई बसंत फिर से जीवन में
दूर हुई सारी उलझन।

चुप क्यों हो कुछ तो बोलो
अपनी नहीं अपनों की कह दो
कुछ अपनी कह दो कुछ मेरी सुन लो।।




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