पता नहीं तुझे कब तक दुढ़ेगा मेरा दिल
साथ भी नहीं रह सकते दूरी भी नहीं सही जाती
जाने कब तुम्हारा अश्यना बना मेरा दिल
मैंने तो तुम्हें सहारा दिया तुझे किनारा मिल सके
खुद किनारा लग कर मुझे ही डूबा दिया ।
निंद नहीं आती है रातों में
तेरी मुस्कान दिखती है निगाहों में
तुझे ढूंढती है सांसे हर पल पनाहों में
तुम ना मिलो तेरा पैगाम बस मिले
मेरा फ़ोन बजे तो तेरा आवाज बस मिले ।
कैसे कटती है राते करवट बदल बदल कर
कैसे कटते हैं दिन तुम्हें याद कर कर
कितना मैं तुम्हें सुनाऊं अनकही बातें
कुछ तेरा भी सुनने को मेरा दिल मचलता है।
तुम्हें तो फिक्र अपनी थी मेरी खबर कुछ ना
मुझे तो छोड़ दी दुनिया में यूहीं भटकने को
किसे कहू कैसे मैं कहूं कुछ तो बता दो
मेरा प्यार आज कहां है किसके बांहों में ।
वो भी तुम्हें मनाती है जैसे मैं मनाती थी
कभी भी मैं नहीं रूठती हर पल मनाती थी
तुम्हारे ही पसंद को तो अपना बनाया था
जो तुम कह देते थे वहीं तो मान लेते थे।
जिद्दी बहुत हूं पर तुम से जिद्द कभी ना की
पता नहीं कब हाथ छूठ जाए दुनिया के भीड़ में
मैं तुम्हें ढूंढ पाऊ इसका पता नहीं
तुम मुझे पहचान सको इसका पता नहीं।
" *आप अपना कॉमेंट देना ना भूलें"* ❤️🙏🌹
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Nice poem. Keeping writing
जवाब देंहटाएंThanks
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