वृक्ष की छाया मिलिती है
मुहब्बत दिल में पलती है
मुहब्बत दिल में पलती है
वृक्ष लगाएं हरियाली फैलाए
कुछ नया पैगाम दे
यादों की जाम दे
इश्क का ही नाम दें।
मेरे पूर्वज बता गए
यादों की बारात दिखा गए
फल - फूल यहां जो मिलती है
नव में बादल खिलती है।
हम उनकी गाथा दुहरते है
अपने बच्चों को भी बताते है
पेड़ हमारा सांस है
खुश्यों का एहसास है।
वातावरण की परिधान है
जीवन की पहचान है
सांस पेड़ों से मिलती है
नव में इंद्रधनुष खिलती है।
हर बाग में वृक्ष लगाएंगे
पानी रोज पिलाएगे
जीते जी न कटने देगें
मुरझाने से पहले नहीं मरने देगें।
बिरभद्रा कुमारी
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