आज पुछती हूं मैं अपने आप से
क्यूं याद करती हूं तुझे इस तरह से
क्यूं बहते है नैनों से नीर आज भी
क्यूं बेचैन होता मेरा मन तेरे लिए ।
क्यूं मुझे लगता है ऐसा आज भी
जो मेरा था वो मेरा ही है आज भी
अब तो ऐसा कुछ भी न रहा
सब बदल गया समय की धार में।
मैं बदल गई तुम भी बदल गया
कल तक जो साथ थे हकिक्कत में
आज तो सिर्फ साथ हैं यादों की छांह में
फिर भी दिल ढूढता है तेरा ही आवाज क्यों।
अपने ही अपने होती है कई सारे बाते
हर रोज बीतता है वर्षों की तरह
रोज सुबह लगती है एक झलक बस मिले
अपने को समझाते हुए थक सी मैं गई
आंख भर जाती है तेरी ही याद में ।
फिर कभी फेसबुक पे तो कभी व्हाट्स ऐप पे
देख कर मिल जाती सकून पल भर की
कैसे में भूल जाऊ तेरी याद को
तुमने बहुत कोशिश की मैं तुम्हें भूलू
पर तेरी कोशिश का उल्टा असर हुआ ।
कल तक जो तन में था वो मन को भी छुआ़
तन को तो फिर भी समझना आसान था
मन की चंचलता पर तो किसी का ना चला
अब और भूलना मुश्किल से हो रहा।
तुमने मुझे छोड़ दिया दर्द से घिरा
ज़ख्म इतना बढ़ा जिसकी कोई दवा नहीं
ज़ख्म औरों से भी मिला पर इतना गहरा नहीं
इसकी तो गहराई का किनारा नहीं मिला ।
जो दवा देता वही ज़ख्म जो दिया
किससे कहूं कि कुछ इंसाफ तो दिला
कुछ इंसाफ तो दिला
मेरा क्या कसूर था जो मुझको सज़ा मिला
मुझको सज़ा मिला मुझको सज़ा मिला ।
आज पूछ रही हूं मैं अपने आप से
क्यूं याद करती हूं तुझे इस तरह से ।
" *आप अपना कॉमेंट देना ना भूलें"* ❤️🙏🌹
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