सारी नदियां मायके चली आई
सावन के महीनों में ।
कितना चहल पहल भर दी
बाबुल के आंगन में।
कभी झूमती है लहरों पे
कभी चूमती खेत खलहिहान,
कभी जम कर लेती अंगड़ाई
थोड़ी सी करती प्रेसान
मां के घर में किसको डर लगता है थोड़ा
भाई भी तो देता साथ,
बादल भैया कहे बहना
डरने की कोई बात नहीं
मुझे कोन रोक सकता है यहां पर
तू नाच जी भर के मैं देता शहनाई तान
तुझको जितना जी चाहे,
मन भर के तुम उधम मचा।
कभी मौसी के घर,
कभी बुआ के घर
जहां दिल करे वहा घूम आ ।
नदियां भी किलकारी मारती
कभी लेती लंबी तूफ़ान
कभी घूमने गांव निकलती
कभी पुलों पे चढ़ जाती ।
कभी कभी तो पूरा शहर घूमने लगती
इतना उधम मचाती मां हो जाती प्रेसान
फिर प्यार से कहती थोड़े दिन और लेलो लार
फिर तो जाना ही है अपने ससुराल।
सावन के महीनों में ।
कितना चहल पहल भर दी
बाबुल के आंगन में।
कभी झूमती है लहरों पे
कभी चूमती खेत खलहिहान,
कभी जम कर लेती अंगड़ाई
थोड़ी सी करती प्रेसान
मां के घर में किसको डर लगता है थोड़ा
भाई भी तो देता साथ,
बादल भैया कहे बहना
डरने की कोई बात नहीं
मुझे कोन रोक सकता है यहां पर
तू नाच जी भर के मैं देता शहनाई तान
तुझको जितना जी चाहे,
मन भर के तुम उधम मचा।
कभी मौसी के घर,
कभी बुआ के घर
जहां दिल करे वहा घूम आ ।
नदियां भी किलकारी मारती
कभी लेती लंबी तूफ़ान
कभी घूमने गांव निकलती
कभी पुलों पे चढ़ जाती ।
कभी कभी तो पूरा शहर घूमने लगती
इतना उधम मचाती मां हो जाती प्रेसान
फिर प्यार से कहती थोड़े दिन और लेलो लार
फिर तो जाना ही है अपने ससुराल।
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