बुधवार, 19 अक्तूबर 2022

 

मुबारक हो तेरी सफ़र ये सुहानी
अपनी तो मुलाकात हुई है पुरानी।

ख्यालों से जुदा भी होने लगें है
धड़कन भी अब तो रोने लगें है।

बड़ा नाजुक था जिन्दगी का ये सफ़र
न जाने कब टूटा और गया यूं बिखड़।

टूटने से पहले चटकी भी नहीं है
बिखरने से पहले भटकी नहीं है
संभालने की कोशिश की भी नहीं है।

चुप चाप यूंही देखते रह गए
कदम भी ठहरे का ठहरे रह गए।

खैर इन बातों में रखा ही क्या है
चाहत का शीला दर्द में ही पला है।

अपनी तो हर ज़ख्म
नज़्म और शायरी में ढला है।

आप सभी के स्नेह का आभारी हूं
Radhe Radhe 🙏
Birbhadra Kumari

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