मैं भी चाहती हूं की तुम्हारी तरह बन जाऊं
तुम आवाज़ लगाओ मैं अनसुनी कर जाऊं।
मेरा दिल तुम्हारे तरह कठोर नहीं बन पाता
भूल न जाऊं तुमको सोच कर दिल घबराता।
रोज तुम्हें याद दिलाने के लिए नमस्कार करती हूं
मैं भूली नहीं हूं बताने के लिए कविता लिखती हूं।
कुछ जबाव भी मिल जाता तो शकुन मिलता
मेरा लिखा सार्थक हो जाता,
दूर ही सही पर पास होने का ऐहसास हो जाता।
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