हर रोज ढूंढती है तुम को पल पल
कहां तुम खो गए दुनियाँ की भीड़ में
हर रोज सजती इस इंतज़ार में
अगले ही पल हो मुलाकात की
कहां तुम खो गए दुनियाँ की भीड़ में
हर रोज सजती इस इंतज़ार में
अगले ही पल हो मुलाकात की
हर रोज पूछती है हवाओं से
घनी धूप की छाह से
कोई तो बताओ कहां है
वो मुझे छोड़ कर यहां पर।
मेरी बीत गई आधी जवानी
उसके इंतज़ार में कब आएगा
लॉट कर मेरे पास मैं
आज भी वहीं हूं इंतज़ार में।
वर्षों की तरह बितती हर रोज
सुबह ढल जाती है दोपहर तक
फिर रात को यादों की चादर ओढ़
सो जाते नई उम्मीद ले के ।
कल कोई तो कुछ संदेश लायेगा
मेरे लिए ।।
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