शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

नई उम्मीद

 हर रोज ढूंढती है तुम को पल पल 
कहां तुम खो गए दुनियाँ की भीड़ में 
हर रोज सजती इस इंतज़ार में
अगले ही पल हो मुलाकात की 

हर रोज पूछती है हवाओं से 
घनी धूप की छाह से 
कोई तो बताओ कहां है
वो मुझे छोड़ कर यहां पर।

मेरी बीत गई आधी जवानी
उसके इंतज़ार में कब आएगा 
लॉट कर मेरे पास मैं
आज भी वहीं हूं  इंतज़ार में।

वर्षों की तरह बितती हर रोज
सुबह ढल जाती है दोपहर तक
फिर रात को यादों की चादर ओढ़
सो जाते नई उम्मीद ले के ।

कल कोई तो कुछ संदेश लायेगा
मेरे लिए ।।



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