हर रोज एक शाम ढलती है
हर रोज एक शाम आती है
हर रोज नई खाब्ब दिखती है
हर रोज कुछ खाब्ब टूटती है।
हर रोज एक शाम आती है
हर रोज नई खाब्ब दिखती है
हर रोज कुछ खाब्ब टूटती है।
हर रोज खुश्याँ भी आती है
हर रोज आंसू भी आती है
हर रोज कुछ नई मिलती है
हर रोज कुछ छूट भी जाती है।
हर रोज आंसू भी आती है
हर रोज कुछ नई मिलती है
हर रोज कुछ छूट भी जाती है।
हर रोज कुछ मान भी जाते है
हर रोज कुछ रूठ भी जाते है
हर रोज इंतज़ार भी रहती है
हर रोज कुछ बैचन होता मन
कुछ राहत से मिलती है।
हर रोज कुछ रूठ भी जाते है
हर रोज इंतज़ार भी रहती है
हर रोज कुछ बैचन होता मन
कुछ राहत से मिलती है।
हर रोज की उलझनें में खुद भूल गई पहचान अपनी
बस हर रोज यहीं उम्मीद में कट जाती है अपनी
आज एक सुबुह आई है कोई नई पैगाम लेके
कुछ अपनों के नाम लेके कुछ दोस्तों के नाम लेके ।।
बस हर रोज यहीं उम्मीद में कट जाती है अपनी
आज एक सुबुह आई है कोई नई पैगाम लेके
कुछ अपनों के नाम लेके कुछ दोस्तों के नाम लेके ।।
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