शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

हर रोज

हर रोज एक शाम ढलती है 
हर रोज एक  शाम आती है
हर रोज नई खाब्ब दिखती है
हर रोज कुछ खाब्ब टूटती है।

हर रोज खुश्याँ भी आती है
हर रोज आंसू भी आती है
हर रोज कुछ नई मिलती है
हर रोज कुछ छूट भी जाती है।

हर रोज कुछ मान भी जाते है
हर रोज कुछ  रूठ भी जाते है
हर रोज इंतज़ार भी रहती है
हर रोज कुछ बैचन होता मन
कुछ राहत से मिलती है।

हर रोज की उलझनें में खुद भूल गई  पहचान अपनी
बस हर रोज यहीं उम्मीद में कट जाती है अपनी
आज एक सुबुह आई है कोई नई पैगाम लेके 
कुछ अपनों के नाम लेके कुछ दोस्तों के नाम लेके ।।




" *आप अपना कॉमेंट देना ना भूलें"* ❤️🙏🌹
     पसंद आए तो दोस्तों को भी शेयर करे

अधिक कविताएं पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करे
https://hindikavitawittenbybir.blogspot.com



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें