सोमवार, 19 जुलाई 2021

सबकी प्रिय मुबाईल

मुबाईल से सुन्दर न कोई महबूब रही ना कोई महबूबा
इसके आशिक़ सभी बना हर कोई दिवाना।

आज मुबाईल ने आ करके
सबकी प्रिय जान बनी
बच्चों ने खेलों को भूला
बड़े बूढ़े गुमनाम हुए
जिसे झूठ आता न कहने
उसको भी सच्चे ज्ञान मिले।

एक पल भी नजरों से ओंझल
इसे कोई न स्वीकार करें।
हर कोई ओंठो से चूमे
सब के दिल के पास रहे।
कभी दूर हो जाए नजरों से
तो बैचेनी भर देती है।
थोड़ी देर मिलने में लग जाए
कितने दर्द दे देती है,
और मिले तो ऐसे जैसे
बिछुड़े प्रेम को मित मिले।

आज मुबाईल ने आकर के
सबकी प्रिय जान बनी।
कुछ लोगों को नई पहचान दिलाया
कुछ लोगों ने खोई जान।
कितने के जीवन सबर गए
कितने बर्बादी के द्वार मिलें।
जो जिस तरह से क्या इश्क 
उसको वैसा परिणाम मिले।
कुछ लोगों से बनी दुरायां
कुछ दिल के पास मिले।
कुछ अपने बने पराएं
पराए से पहचान बनी।।

आज मुबाईल ने आकर के
सबकी प्रिय जान बनी।
जो रहते थे मिलो दूरी
वो घर में एक साथ मिले
घर में साथ रहने वाले,
उसे दूरियां की प्यास मिले।
बच्चे बूढ़े मिले अकेले,
रिस्तेदारों दूर मिले।
मित्रों जो मिलते थे संडे को
अब तो वीडियो कॉल मिले।
आज मुबाईल ने आकर के 
सबकी प्रिय जान बनी।।





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