रविवार, 18 जुलाई 2021

रिमझिम बूंदे धरा पे है आई

 कितनी भावन रिमझिम बूंदे धरा पे है आई 
अपनी खुशबू से सबके,
तन मन को महकाई।
कहीं नाचे बागों में मोर 
कहीं कोयल कहीं पपिहा की स्वर है गूंजे।
लह लहा उठा हर खेत यहां
नदियां कल कल गाती है
हर पेड़ मगन में झूम उठा
तितली भी इतराती है नभ मेंं
भौंरे भी गान सुनाती हैं
कलियां भी मुस्कान भरे
मौसम भी  इठलाती हैं
धूप की मंद मंद चालों में
हर कोई खो जाता है ।
चिड़ियो की गूंज बजे आंगन में
मेढ़क भी टरराता है।
कितनी भावन रिमझिम बूंदे धरा पे है आई
हर मन को छूकर छुए दिल की गहराई।।

 











कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें