शनिवार, 17 जुलाई 2021

एक लड़की की वेदना


मैं बेटी तेरे घर की 
इस घर की मैं बहू बनी
न सम्मान तुमसे है पाया
यहां तो बस अपमान मिली।

तुम कहती थी सब सीख लो
कल पराई हो जाना हैं
यहां तो बस यही सुननती हूं
मेरा कुछ अधिकार नहीं।

मैं पुछती हूं सबलोगों से 
क्या मेरी पहचान है
आज यहां कल वहां 
कहीं मेरा सम्मान नहीं।

याद बचपन की आती
आँख छलक सी जाती है
कैसे तुम मुझको चूमती थी
कैसे कहती रानी थी।

आज तो बस तानें मिलती है
कोई अपना प्यार नहीं
बस दिन रात गुजरती है
कल सबकुछ अच्छा होगा यही उम्मीदों में।

रोज सुबह फिर उठ कर लग जाती
सबकी पसंद पूरी करने में
सबकी पूरी करते करते 
अपनी अरमान भूल गई।

जो सपने मैंने देखी
कबके है टूट गईं
क्या मेरी जीवन की यही कहानी है
कल तक डोर तेरे हाथों में थी 
आज भी आरों के हाथों में।।




" *आप अपना कॉमेंट देना ना भूलें"* ❤️🙏🌹
     पसंद आए तो दोस्तों को भी शेयर करे

अधिक कविताएं,शायरी  पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करे
https://hindikavitawittenbybir.blogspot.com

https://lovetoeachotner.blogspot.com/
https://myfeelingsseeonthis.blogspot.com/



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें