शनिवार, 17 जुलाई 2021

उठ खड़े हो अपने पैरों पर

रोज़ सुबह सूरज की किरणें 
हमें यही सिखलाती है
उठ खड़े हो अपने पैरों पर
तुम कोई लाचार नहीं ।

सुबह की मंद मंद हवा ये 
कहती  गंध भर दो जीवन में 
खुद भी मुश्काओं औरों
 की मुस्कान बनो।

बादल रोक नहीं सकती 
सूरज की किरणों को
दुख की बादल यू छट जाती
उम्मीदों की लहरों पे।

तुम्हें हौसला है अगर 
आकाश में उड़ने की 
उठो सबरे लगजाओ 
आज नई अंदाजों में ।

कल की छोड़ो कल नहीं 
देखती है नई किरण कभी  
कितना घना बादल था नभ में
कितना पानी वर्षा था।

वो हर रोज  अपनी नई
पहचान बनाता हैं जग में 
हमें जागता है और कहता
तुम अपनी पहचान बना।

उठ खड़े हो अपने ही पैरों पर
ये संसार को दिखला दो तुम
तुम्हें हौसला हो बढ़ने की 
कोई रोक नहीं सकता।।






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