रोज़ सुबह सूरज की किरणें
हमें यही सिखलाती है
हमें यही सिखलाती है
उठ खड़े हो अपने पैरों पर
तुम कोई लाचार नहीं ।
सुबह की मंद मंद हवा ये
कहती गंध भर दो जीवन में
खुद भी मुश्काओं औरों
की मुस्कान बनो।
बादल रोक नहीं सकती
सूरज की किरणों को
दुख की बादल यू छट जाती
उम्मीदों की लहरों पे।
तुम्हें हौसला है अगर
आकाश में उड़ने की
उठो सबरे लगजाओ
आज नई अंदाजों में ।
कल की छोड़ो कल नहीं
देखती है नई किरण कभी
कितना घना बादल था नभ में
कितना पानी वर्षा था।
वो हर रोज अपनी नई
पहचान बनाता हैं जग में
हमें जागता है और कहता
तुम अपनी पहचान बना।
उठ खड़े हो अपने ही पैरों पर
ये संसार को दिखला दो तुम
तुम्हें हौसला हो बढ़ने की
कोई रोक नहीं सकता।।
" *आप अपना कॉमेंट देना ना भूलें"* ❤️🙏🌹
पसंद आए तो दोस्तों को भी शेयर करे
अधिक कविताएं पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करे
https://hindikavitawittenbybir.blogspot.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें