हे कृष्ण तुमने अपना पहचान
बनाने के लिए मुझे छोड़ गए
पहले प्यार करना सिखलाया
फिर तड़पते छोड़ गए ।
बनाने के लिए मुझे छोड़ गए
पहले प्यार करना सिखलाया
फिर तड़पते छोड़ गए ।
आज भी अपने नैनों की जल में
रोज नहाती हूं कभी तो
वस्त्र चुराने तुम आओगे
तब मैं तुमसे पुछूगी।
तुम तो राज मुकुट पहनें
मुझे तड़पते छोड़ दिया
तेरी गाथा जग में फैली
मुझे प्यार का नाम दिया।
अब तो यमुना तट भी जाना
मकारी सी लगती हैं
कहां मिले बंशी की धुनें
राधा राधा कोन कहे ।
रोज सबेरे वृंदावन की राहों में
उम्मीदें बिछ सी जाती है
कोई बस इतना कह दे मुझ से
राधा राधा कान्हा तुझे बुलाती हैं।।
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