शनिवार, 17 जुलाई 2021

हे कृष्ण तुमने अपना पहचान
बनाने के लिए मुझे  छोड़ गए
पहले प्यार करना सिखलाया
फिर तड़पते छोड़ गए ।

आज भी अपने नैनों की जल में
रोज नहाती हूं कभी तो 
वस्त्र चुराने तुम आओगे
तब मैं तुमसे पुछूगी।

तुम तो राज मुकुट पहनें
मुझे तड़पते छोड़ दिया 
तेरी गाथा जग में फैली 
मुझे प्यार का नाम दिया।

अब तो यमुना तट भी जाना
मकारी सी लगती हैं
कहां मिले बंशी की धुनें
राधा राधा कोन कहे ।
 
रोज सबेरे वृंदावन की राहों में
उम्मीदें बिछ सी जाती है
कोई बस इतना कह दे मुझ से
राधा राधा कान्हा तुझे बुलाती हैं।।









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