जिसे मिलना हो सागर से,
उसे कोई रोक नहीं सकता
बहती नदियां कब डरती है,
पत्थर और पहाड़ों से ।
हर बाधा से खुद लड़ती है,
आगे बढ़ती जाती है ।
उसके आगे हर मुश्किलें
अपना शीश झुकती है।
उसे कोई रोक नहीं सकता
बहती नदियां कब डरती है,
पत्थर और पहाड़ों से ।
हर बाधा से खुद लड़ती है,
आगे बढ़ती जाती है ।
उसके आगे हर मुश्किलें
अपना शीश झुकती है।
जो बाधा बन खड़े मिल जाए उसके राहों में,
पहले तो वह राह मांगती दे दे तो अच्छा है।
नहीं तो, उसको मालूम है
अपनी राह कैसे बनती है
जो शीश झुका दे राहों मैं
उसको वो भी नमन करे
जो राहों में अकड़ दिखाएं
उसे भी संग ले जाती है।
जिसे मिलना हो सागर से उसे कोई रोक नहीं सकता
राहें चाहें कितनी भी मुस्किल हो अपनी राह बनाती है
कभी नहीं थकती है
बाधाओं की घेरों से
हर पल तो बस यही देखती
सागर से मुझे मिलना है
अभी तो थोड़ी दूर चली है
अभी तो मिलो है चलना।
कभी नहीं है डरती आंधी और अंधेरे से
वो तो अपनी राह बनाती सागर से मिलने तक की ।
जब तक न सागर से मिल जाए
क्या सोना क्या जगना है
बहती नदियां कब डरती है
पत्थर और पहाड़ों से ।।
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