प्रभु ने बनाया सबको एक समान,
प्रकृति ने भी दिया सब को सम्मान,
यह भेद कहां से फिर आया,
क्या कर अब तू पछताया....?
सूरज की रोशनी समान
चांद की शीतलता समान
दिन और रात एक समान
जन्म और मृत्यु एक समान।
यश अपयश एक समान
सुख दुःख में कोई भेद नहीं!
फिर भी गरीब अमीर का भेद बना
यह भेद समाज बनाया है
शिक्षित समाज से आया है।
गरीब अमीर का नफ़रत बोया
अच्छा दौलत पा कर भी,
गरीबों का रोटी खाया
यह देख मन पछताया है
यह देख आंसू आया है।
सम्मान पाए वो लोग जो
सजा के अधिकारी है
मैं भी कुछ कर ना सका
यह सोच कर पछताया है।
बीरभद्रा कुमारी
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