मंगलवार, 21 सितंबर 2021

प्रेम कलम अस्तित्व

प्रेम कलम अस्तित्व
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दिल की तरंगों को ,चाहत की उमंगों को
मन के भाव से ,मित मिले प्रित से।

कलम प्रेम से मैने पकड़ा
प्रित प्रेम का है जो पाया
चलो सजाते गीत, कविता
अपनी अस्तित्व जो है, तुम में पाया।

पहला प्रेम मां से पाया
सारा जग दीवाना पाया
प्रेम समझ नहीं पाई अब तक
जिसको समझा प्रेमी, आशिक
नाव भमर में है डुबाया।

भरे महफिल में तन्हा पाया
आंसु के सागर में डूबा
तन्हाई का आलम छुआ
प्रेम दीवाना पन या है पागल पन 
सारी दुनियां में है दिवानगी पाया।

उपमा प्रेम का पाया राधा, मीरा
किबीरा दीवाना था  या पागल 
प्रेम जब तुलसी दास को छुआ
रामचरित्र मानस समझाया।

प्रेम प्यास ,चाहत, दीवाना
सोना, जगना, खोना, पाना
सब बराबर हो जाता है
प्रेम अगर हो जाए तो
जीवन प्रेम मय हो जाता है।

प्रेम मुझे भी जब छुआ तो 
मैं भी प्रेम कलम से लिखा
प्रेम बनी गजल, कविता
तो प्रेम सारी दुनियां से पाया।

बिरभद्रा कुमारी

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