जमाने के आगे नंतमस्क हो गए
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धरती की दूरी चाँद सहलेती है
सूरज के अंगारों को धरती सहलेती है
सागर से मिलने नदियाँ, हिमालय से आती है
आ जाओ प्रिय, तेरे दिए गए वचन की कसम
तेरी दूरियाँ, मुझसे नहीं सही जाती है।
रात भर चाँद को निहारती रहती हूँ
अकेले में बाते किया करती हूँ
एक बार तो जी भर के देख लूँ
दुआ दिन- रात किया करती हूँ |
सुबह की नई किरण एक पैगाम देती है
सब्र रख हर शाम के बाद सुबह जरूर आती है
तुम से मिलने जरूर आएगा
वह भी तो तेरे बिना, बेक़रार रहता है |
मिल जाओ, तो पूछ ले हम भी
मुहब्बत तुमने शुरू की , खत्म भी तुम ही
क्या गलती थी मेरी, जो सजा मुझे है दिया
कोई और नहीं मिला, मुझे ही चुन लिया|
प्यार के तराने निराले होते है
आँखों से पीते है, आँखों से बह जाते है
गलती आँखों की होती है,सजा दिल पा लेता है
इश्क हो जाए, तो मुकदर रूठ जाता है|
इतनी खाता मेरी भी थी, तेरे आंसु में बह गए
प्यार सिखलाया, हम भी सिख लिए
तेरे हा में हा कर तो दी मैंने
जमाने के आगे नंतमस्क हो गए।
दिन और रात बराबर हो गया
जागना और सोना एक सा हो गया
अब तो यादों में जीना, खाबों में मरना सा लगता है
कितना भी कोशिश करूँ , तुझे भूल जाने की
कोई न कोई, तेरे बारे में पूछ ही लेता है|
बिरभद्रा कुमारी
भेरी नाइस
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