लक्ष्मी
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उगता हुआ सुरज इजाज़त मांगता नहीं
तेरी रहमत हो जिसपे वो जनता नहीं।
तुम दिखती हो मानव को सिर्फ धन और दौलत में
तेरी माया को मानव कब पहचान पाया है।
तुझे तो मांग लिया कलयुग पैसा और सोना में
तभी तो तुम रहती हो जहां, वही दुराचार होता है।
तेरी मादकता को कौन सह पाया है
धन होता जहां ज्यादा, वहीं दुरुपयोग होता है।
इन्सानियत को भी तो वही लोग खोते है
जिसे हम समझते है धनी, क्या वो सचमुच होते है।
विनती मेरी माता इतना सुन लेना
तुम रहना वहीं माता जिसके दिल में नारी हो
बेटी, बहु को भी तो लक्ष्मी ही बुलाते है
उसके पास नहीं रहना जो नारी को कुचलते है।
मेरी विनती है लोगों से सम्मान हो दिल में
यदि बेटी नहीं होगी तो लक्ष्मी किसे बुलाएंगे।
बिरभद्रा कुमारी
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