दिल पर रखे पत्थर को क्यों
आकार के फिर हटा दिया
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छोड़ दिया जब मैने तुमको
अपने दिल पे पत्थर रखकर
फिर क्यों हटाने आ गया
अब दिल तेरे लिए ही रो रहा
तो क्यों व्यस्तता बता रहा ।
नहीं चाहिए प्यार तुम्हारा
एक पैगाम ही तो काफी है
समझा लूंगी अपने दिल को
इंतज़ार अभी तो बाकी है।
माना की तुम व्यस्त बहुत है
फिर जख्म मेरा क्यों बढ़ा दिया
दिल पर रखे पत्थर को क्यों
आकार के फिर हटा दिया।
इश्क का हाथ बढ़ा कर
बीच भवर में छोड़ गया
भरी महफिल में तन्हा करके
यूं तरपता छोड़ गया ।
व्यस्त बहुत हो अब कहते हो
जब बदनाम कर दिया तुमने
इश्क तुम मुझसे करते हो
जब सरेआम कर दिया तुमने।
हर गलती को माफ किया
एक पैगाम तुम अब दे देना
जख्म जो दिया तुमने
थोड़ा सा मरहम दे देना।
बिरभद्रा कुमारी
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